"पासी समाज के नाम दो शब्द"
पासी जाति मुख्यतः उत्तर भारत के अवध प्रांत की शासक जाति रही है , जिनका शासन पूरे
अवध में 12 वीं सदी तक था, जिनको अंग्रेज लेखकों ने ( Ruler of Oudh) कहा । फिर बाद
में लगातार हुए मुस्लिम और राजपूतों के आक्रमण से ये लोग अपनी शासन सत्ता खो बैठे हैं।
तत्पश्चात जंगलों की ओर पलायन कर गए जहां छोटे-छोटे किले बनाकर रहने लगे ये बागी व
सरदारों के रूप में जाने गए । काफी समय व्यतीत होने के बाद में 17 -18 वीं सदी के आते-आते
पासी जाति के लोग अपनी सेवाएं भारतीय राजाओं के सेना में देने लगे।
अवध के नवाब वाजिद अली शाह के यहां इनकी "पासी पलटन" थी, जिसने 1857 की क्रांति में
बेगम हजरत महल और उनके पुत्र बिरजिस कद्र को पासी पलटन के नेतृत्व में रेजीडेंसी से
सुरक्षित निकालकर नेपाल पहुंचाया था। 1857 की क्रांति में अहम भूमिका निभाने पर अंग्रेज
लेखक मार्टिन गुब्बिंस ने अपनी पुस्तक (An account of mutny 1857) पेज 72 पर सरकार
से गुजारिश करते हुए लिखा है कि " इन पासियो को भविष्य में बेहद निर्दयता से कुचलना
होगा " पासी जाति का खौफ अंग्रेजों में बना रहा, जिसके फलस्वरूप 1871 में 200 जातियों
पर जरायम पेशा एक्ट लगाया गया, जिसमें पासी जाति भी शामिल थी। इस काले कानून के तहत
पासियों की सारी संपत्तियां जब्त कर ली गई और सभी नौजवानों को कैद कर लिया गया, जिसके
कारण पासियों की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई। इस काले कानून में 1924 में कुछ संशोधन
भी किये गये।