आजादी की अमर शहीद वीरांगना ऊदादेवी पासी
वीरांगना ऊदादेवी पासी स्व0 बाबू राम सहाय चौधरी पूर्व एम0 एल0 सी0 की परदादी अर्थात
ग्रेट ग्रैन्ड मदर थी। उनके वंशज आज भी हुसैनगंज चौराहा, लखनऊ के पास निवास करते हैं।
बात भारतवर्ष में अंग्रेजी शासन के विरूद्ध आजादी की लड़ाई के समय की है। तत्समय अवध
के नवाब वाजिद अली शाह की सेना में “पासी पल्टन” नाम की फौज हुआ करती थी। नवाब वाजिद
अली शाह के लखनऊ से जाने के पश्चात् सिकन्दरबाग का इलाका पासी रक्षक महिलाओं की देख-रेख
में था। सर कालिन कैम्पवेल इस क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए अपना जाल बिछा रहा था।
16 नवम्बर 1857 को अंग्रेजी सेनाओं नें सिकन्दर बाग को चारों ओर से घेर लिया था, फलस्वरूप
अंग्रेजी सेना और क्रान्तिकारियों की सेना के बीच घमासान युद्ध प्रारम्भ हो गया।
युद्ध के परिपेक्ष्य में श्री जी.पी. मलिसन नें “इन्डियन म्यूटिनी” नामक पुस्तिका के
वाल्यूम प्ट के पृष्ठ संख्या 132 में लिखा है कि “क्रान्तिकारियों नें अपनें जान की
बाजी लगाकर पूरी वीरता के साथ युद्ध किया हमारी सेना रास्ता चीरती हुई अन्दर घुस आई
तब भी संग्राम बन्द नहीं हुआ”। एक-एक कोने के लिए संग्राम होता रहा।”
इस युद्ध में रक्षक पासी महिलाऐं जनानी फौजों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ रही
थी। फोर्विस मिचाईल नें अपनें संस्मरणों में वीरांगना ऊदादेवी पासी की वीरता का भरपूर
वर्णन किया है। इस वीरांगना के बारे में उसनें 93वीं बटालियन के अंग्रेज सिपाही से
सुना था।
लड़ाई के दिन भीषण गर्मी थी। गोलाबारी से पूरा क्षेत्र तप उठा था। अंग्रेजी सेना की
53वीं बटालियन और 93वीं बटालियन नें अधिकांश क्रान्तिकारियों का वध कर दिया था। वहीं
सिकन्दर बाग में एक बड़े पीपल के पेड़ के नीचे बड़े-बड़े मिट्टी के घड़ों में पीनें का पानी
भरा था। अपनें संगी साथियों के मारे जानें के तुरन्त बाद वीरांगना ऊदादेवी पासी उसी
पीपल के पेड़ पर अपनें हथियारों के साथ लपक कर चढ़ गयी और उन्होंनें अपनें आपको पीपल
की पत्तियों और डालियों से छुपा लिया, फिर उन्होंनें मोर्चा सम्हाल लिया और पेड़ के
नीचे आनें वाले अंग्रेज सिपाहियों को चुन-चुन कर मारना शुरू कर दिया। देखते ही देखते
उन्होंनें 36 से अधिक सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। वे तब तक अंग्रेजों का वध
करती रहीं जब तक उनकी गोली-बारूद समाप्त नहीं हो गयी।
इस बीच मेजर डाउसन उधर आ गया, उसने देखा कि 36 अंग्रेजी सैनिक पेड़ के पास मरे पड़े ह,ै
तो उसनें कैप्टेन वैलेस को आवाज देकर बुलाया। कैप्टन वैलेस एक चतुर सेनानायक था। उसनें
मेजर डाउसन को चिल्ला कर बताया कि पीपल के पेड़ पर से किसी के द्वारा इन अंग्रेजी सिपाहियों
की हत्या की गयी है। उसनें तुरन्त निशाना साधा और वीरांगना ऊदादेवी पासी के ऊपर प्राण
घातक फायर किया। चूंकि वीरांगना ऊदादेवी पासी के पास गोलियां एवं कारतूस समाप्त हो
गये थे। अतः वे जवाबी फायर नहीं कर सकीं। गोली लगते ही वे पेड़ से नीचे गिरी और उनकी
इहलीला समाप्त हो गयी। गोली लगनें के समय वीरांगना ऊदादेवी पासी लाल जैकेट पहनें हुयी
थीं। जब वे पेड़ से नीचे गिरी तो जैकेट का ऊपरी भाग खुल गया। तब कैप्टेन वैलेस एवं मेजर
डाउसन को पता चला कि वीरगति को प्राप्त क्रान्तिकारी एक महिला है। कैप्टेन वैलेस एक
वीर क्रान्तिकारी महिला की वीरता पर आश्चर्य चकित हो, जोर-जोर से रोनें लगा और कहनें
लगा कि यदि मुझे पता होता कि पेड़ की ओट में छुप कर अंग्रेजी सेना को हताहत करनें वाला
क्रान्तिकारी एक वीरांगना महिला है तो चाहे मुझे हजार बार मरना पड़ता किन्तु मैं गोली
नहीं चलाता।
फोर्बस मिशायल (William Forbes Mitchell) ने अपनी पुस्तक "Reminiscences of the Great
Mutiny" के पृष्ठ - 57,58 पर इसका उल्लेख इस प्रकार किया है:- As told by Sergeant
William Forbes Michell of tales 93rd High landers :- "In the centre of the inner
court of the Secunderbagh there was a large Peepul tree with a bushy top, round
the foot of which were set a number of jars full of cool water. When the slaughter
was almost over many of our men went under the tree for the sake of its shade, and
to quench their burning thirst with a drought of the cool water from the jars. A
number, however, lay dead under this tree, both of the 53rd and the 93rd, and the
many bodies laying in the particular spot attracted the notice of Captain Dowson,
After having carefully examined the wounds, he noticed that in every case the men
had evidently been shot from above, He there upon stepped out from beneath the tree,
and called Captain Tucker Wallace to look up if he could see any one in the top
of the tree, because all the dead under it had apparently been shot from the above.
Wallace had his rifle loaded and stepping back he carefully scanned the top tree,
He almost immediately called out. I see him Sir ! And holding his rifle he repeated
aloud. " I'll pay vows now to the Lord, Before His people all. " He fired and down
fell a body, dresses in a tight fitting red Jacket and rose coloured silk trouser
and the breast of the jacket bursting open with the fall, showed that the wearer
was a women, when the Wallace saw that the person whom he shot was a women, he burst
in to tears exclaiming. If I had known it was a women. I would rather have died
a thousand deaths than have harmed her. "Reminiscences of the great Mutiny" by William
Forbes. Mitechell. .............a women who perched on a large peepul tree in the
court of Sikandar Bagh shot a number of British soldiers and was shot in her turn.
वीरांगना ऊदादेवी पासी की एक वक्ष प्रतिमा, जो सीमेन्ट की बनी थी, 30 जून 1973 को लखनऊ
के तत्कालीन मेयर डा. दाऊजी गुप्त के प्रयास से सन् 1857 ई. की स्वतंत्रता संग्राम
समारोह समिति के द्वारा सिकन्दरबाग में स्थापित करायी गयी थी। वीरांगना ऊदादेवी पासी
की एक आदमकद कांस्य मूर्ति उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा सिकन्दरबाग चौराहा, लखनऊ (उ.प्र.)
में लगभग बारह लाख रुपये की लागत से लगवायी गयी है। इन दोनों ही स्थानों पर लोग 30
जून और 16 नवम्बर को भारी संख्या में एकत्र होकर देश की प्रथम महिला शहीद वीरांगना
ऊदादेवी पासी को अपने श्रृद्धा-सुमन अर्पित करते हैं।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है कि:-
शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले।
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा।।